जैवविविधता तप्तस्थल या जैवविविधता उष्णा
"जैव विविधता" शब्द सबसे पहले वाटर जी. रोसेन द्वारा 1986 में गढ़ा और उपयोग किया गया था। जैव विविधता पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व रखती है और हमें पोषण, आवास, ईंधन, कपड़े और कई अन्य संसाधन प्रदान करती है।
जैव विविधता के प्रकार:-
जैव-विविधता तीन प्रकार की हैं।
(i) आनुवंशिक विविधता,
(ii) प्रजातीय विविधता; तथा
(iii) पारितंत्र विविधता।
(i) आनुवंशिक विविधता:-
•यह जीवों के आनुवंशिक संसाधनों के बीच भिन्नता को संदर्भित करता है।
•एक विशेष प्रजाति का प्रत्येक सदस्य अपने आनुवंशिक गठन में एक दूसरे से भिन्न होता है।
(ii) प्रजातीय विविधता:-
•यह किसी दिए गए पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक समुदायों (पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों) की विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की विविधता को संदर्भित करता है।
•यह सबसे बुनियादी स्तर पर जैव विविधता है।
(iii) पारितंत्र विविधता:-
• पारिस्थितिक जैव विविधता एक साथ रहने वाले और खाद्य श्रृंखलाओं और खाद्य जाले से जुड़े पौधों और जानवरों की प्रजातियों में भिन्नता को संदर्भित करती है।
• यह एक क्षेत्र में विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र के बीच देखी गई विविधता है।
जैव विविधता हॉटस्पॉट:-
(जैवविविधता तप्तस्थल या जैवविविधता उष्णा) (बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट) एक ऐसा जैवभौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में जैवविविधता पायी जाती है और वह किसी प्रकार के मानवीय क्रियाकलापों के कारण से संकट में आ गया हो। जैव विविधता हॉटस्पॉट शब्द पहली बार 1998 में एक ब्रिटिश पारिस्थितिकीविद् नॉर्मन मायर्स द्वारा पेश किया गया था।
किसी क्षेत्र को जैव विविधता तप्तस्थल स्थल घोषित करने के लिए दो शर्तों का होना आवश्यक है-
(१) उस क्षेत्र में कम से कम 1500 स्थानबद्ध प्रजातियाँ होनी चाहिए।
(२) उस क्षेत्र के मूल आवास का 70 प्रतिशत उजड़ चुका हो अर्थात मानव गतिविधियों से उस क्षेत्र के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा हो।
भारत के जैव विविधता तप्तस्थल:-
विश्व में समृद्ध जैव विविधता के 34 हॉटस्पॉट की पहचान की गई है जिनमें से तीन हॉटस्पॉट भारत में पाए जाते हैं:-
1.हिमालय जैव विविधता तप्तस्थल
2.भारत-बर्मा जैव विविधता तप्त स्थल
3.पश्चिमी घाट जैव विविधता तप्तस्थल
1.हिमालय जैव विविधता तप्तस्थल:-
•इसके अन्तर्गत उत्तराखंड सिक्किम अरुणाचल प्रदेश और भारत के उप हिमालयी पश्चिम बंगाल, नेपाल, भूटान और दक्षिण पश्चिम चीन में युन्नान प्रांत के समृद्ध जैविक समुदाय शामिल हैं।
• हिमालय के जैवविविधता तप्तस्थल क्षेत्र में वनस्पतियों की लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानबद्ध हैं।
•इस क्षेत्र में पाये जाने वाले कुछ प्रमुख जीवों के नाम हैं हिमालयी नहर, सुनहरा लंगूर, हुलोक गिब्बन, उड़न गिलहरी, हिम तेंदुआ, गांगेय डॉल्फिन आदि।
2.भारत-बर्मा जैव विविधता तप्त स्थल:-
•इसमें भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों और उससे सटे म्यांमार (बर्मा) के समृद्ध जैविक समुदाय शामिल हैं।
•इनमें मिश्रित आर्द्र सदाबहार , शुष्क सदाबहार, पतझड़ी एवं पर्वतीय वन सम्मिलित है।
•इस विशाल तप्तस्थल में 433 प्रकार के स्तनधारी जीव और 1266 प्रकार की मछली प्रजातियाँ पायी जाती है।
3.पश्चिमी घाट जैव विविधता तप्तस्थल:-
•इस क्षेत्र में वनस्पतियों को 5916 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत स्थानबद्ध हैं।
•झाड़ीदार जंगल, पतझड़ी एवं उमणकटिबंधी वर्षावन, पर्वतीय जंगल और शानदार घास के मैदान, यहाँ सब कुछ पाया जाता है।
•इसमें प्रायद्वीपीय भारत का पश्चिमी किनारा (महाराष्ट्र कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल राज्य) शामिल है।
•यहाँ पाये जाने वाले मुख्य जीव टरी-एशियाई हाथी, मैकाक बंदर।
जैव विविधता का महत्व:-
पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए जैव विविधता और इसका रखरखाव बहुत महत्वपूर्ण है। 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन (रियो सम्मेलन) के दौरान जैव विविधता के महत्व और संरक्षण को अधिक महत्व दिया गया था।
जैव विविधता के लाभों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: -
1.पारिस्थितिक लाभ:-
•हमारे मीठे पानी के संसाधनों का संरक्षण और सुरक्षा करता है।
•वायु की शुद्धता को बनाए रखता है।
•मिट्टी के निर्माण और संरक्षण को बढ़ावा देता है।
•पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता बनाए रखता है।
•जलवायु स्थिरता में योगदान देता है।
•अधिक भोजन और चिकित्सा संसाधन प्रदान करता है। •पारिस्थितिकी तंत्र उत्पादकता बढ़ाता है, आदि।
2.आर्थिक लाभ:-
•भोजन का स्रोत।
•कपड़े।
•विटामिन।
•जड़ी-बूटी और दवाइयां।
•ईंधन की लकड़ी और वाणिज्यिक इमारती लकड़ियां।
•औद्योगिक कच्चा माल।
•पर्यटन, आदि।
जैव विविधता का संरक्षण:-
जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण रणनीतियाँ इस प्रकार हैं: -
•सभी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण जीवों की पहचान की जानी चाहिए और उनका संरक्षण किया जाना चाहिए।
•अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र को पहले संरक्षित किया जाना चाहिए।
•संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए। •जंगली जानवरों के शिकार और शिकार को रोका जाना चाहिए।
•भंडार और संरक्षित क्षेत्रों को सावधानीपूर्वक विकसित किया जाना चाहिए।
•पर्यावरण में प्रदूषकों के स्तर को कम किया जाना चाहिए।
•वनों की कटाई पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए। •पर्यावरण कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। •पौधों और जानवरों की उपयोगी और लुप्तप्राय प्रजातियों को उनके प्राकृतिक और कृत्रिम आवासों में संरक्षित किया जाना चाहिए।
•जैव विविधता संरक्षण और इसके महत्व के बारे में सामाजिक और जन जागरूकता पैदा की जानी चाहिए।
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